बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में मूल अधिकार एवं नीति निदेशक तत्वों के मध्य सम्बन्ध तथा अन्तर की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख भारतीय नागरिकों में स्वतंत्रता, अधिकार एवं कर्त्तव्यों के विषय में जागरूक करना तथा उन्हें स्वतंत्र रूप से अपना विकास कर सकने लायक स्थितियों का निर्माण करना था। संविधान निर्माता जिन बातों को तुरन्त ही प्रदान करने की स्थिति में थे उनको मूल अधिकारों के रूप में उल्लिखित किया तथा जिन बातों को वह तुरन्त प्रदान कर सकने की स्थिति में नहीं थे उन्हें उन्होंने नीति निदेशक सिद्धान्तों के रूप में प्रस्तुत किया। इस आधार पर मूल अधिकार तथा नीति निदेशक सिद्धान्त के मौलिक समानता दृष्टिगत होती है, किन्तु इसके बावजूद भी इन दोनों में पर्याप्त अन्तर हैं जोकि निम्नलिखित हैं-
मौलिक अधिकार न्याय योग्य है जबकि नीति निदेशक तत्व न्याय योग्य नहीं है मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक तत्वों में पहला तथा अत्यन्त महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं। जबकि नीति निदेशक तत्व न्याय योग्य नहीं है। मूल अधिकारों के न्याय योग्य होने से तात्पर्य कि यदि कोई कानून नागरिकों के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है तो अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वे मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करे। अतः यह न्यायालय भारतीय नागरिकों का प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानूनों को अवैध घोषित कर सकते हैं।
1. जबकि न्यायालयों द्वारा नीति निदेशक सिद्धान्तों के सम्बन्ध में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। अर्थात् न्यायलयों द्वारा किसी कानून को इस आधार पर अवैध नहीं घोषित किया जा सकता कि वह निदेशक तत्वों के प्रतिकूल है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से नजरबन्द कर दिया जाये तो वह न्यायालय से बन्दी प्रत्यक्षीकरण का लेख जारी करवा सकता है, किन्तु यदि राज्य संविधान के नीति निदेशक सिद्धान्तों के अनुसार मद्य निषेध लागू नहीं करता तो भारत का कोई न्यायालय राज्य को मद्य निषेध लागू करने के लिए बाध्य कर सकता। राज्य सरकार स्वतः ही इसे अपने नीतिगत फैसलों के अन्तर्गत समाप्त कर सकती है।
मौलिक अधिकार निषेधाज्ञाएं हैं जबकि नीति निदेशक तत्व सकारात्मक उत्तरदायित्व हैं : मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक सिद्धान्त में दूसरा अन्तर यह है कि संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार एक प्रकार से निषेधाज्ञाएं हैं जिनके पास राज्यों को कुछ कार्यों को करने से रोका जाता है। इसके विपरीत निदेशक तत्व नागरिक के प्रति राज्य के कुछ सकारात्मक उत्तरदायित्व है। तथा राज्य से यह आशा की गई कि वह नागरिकों के प्रति अपने इन दायित्वों का पालन करेगा। राजनीतिक विचारक ऐलेन ग्लेडहिल के अनुसार “मौलिक अधिकार तो कतिपय निषेधाज्ञाएँ हैं और इनके द्वारा राज्य को कुछ कार्य को करने से रोका जाता है। इसके विपरीत राज्य के नीति निदेशक तत्व सरकार के लिए कुछ सकारात्मक आदेश है, जिन्हें पूरा करना उसका कर्त्तव्य ठहराया गया है।
कुछ अन्य प्रकरण हैं जो मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक तत्वों के अन्तर को व्यक्त करते हैं। जैसाकि 42वें संविधान संशोधन से पूर्व वैधानिक दृष्टि से निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों की अपेक्षा गौण स्थिति प्राप्त थी तथा दोनों में पारस्परिक विरोध होने की स्थिति में मूल अधिकार ही प्रभावी होते हैं। लेकिन 42वें संविधान संशोधन के उपरान्त मूल अधिकारों की तुलना में निदेशक तत्वों की प्रमुखता की स्थिति प्रदान की गई है। 42 वें संविधान संशोधन की धारा (4) में यह कहा गया है कि संविधान के भाग (4) नीति निदेशक तत्व के किसी एक या सभी सिद्धान्तों को लागू करने के लिए जैसेकि कानून या कानूनों का निर्माण करें उन्हें इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी कि ये कानून संविधान द्वारा दिये गये किसी मूल अधिकार को सीमित या समाप्त करते हैं। सन् 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा भी इसी स्थिति को यथावत् बनाये रखा गया।
किन्तु 42वें संविधान संशोधन को जब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 'मिनर्वा मिल्स तथा अन्य बनाम भारत सरकार विवाद के निर्णय देते हुए मई 1980 में 42वें संविधान संशोधन की धारा (4) तथा धारा (55) को यह कहते हुए अवैध घोषित कर दिया कि 'निदेशक सिद्धान्तों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा उच्चतर स्थिति प्रदान करने पर संविधान की मूल संरचना नष्ट होती है।
शासन द्वारा कई बार नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों से श्रेष्ठता की स्थिति प्रदान करने की घोषणाएं एवं कोशिशें की गई, किन्तु उन्हें कभी न्याय योग्य स्थिति प्रदान नहीं की गई। अतः जब तक नीति निदेशक तत्वों को न्याय योग्य स्थिति प्रदान नहीं की जाती, जब तक उनकी स्थिति मौलिक अधिकारों की तुलना में निम्न ही रहेगी।
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- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
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- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
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